क्‍या होता है प्रेम (नया ज्ञानोदय के प्रेम विशेषांक में प्रकाशित कहानी) पंकज सुबीर

kya hota he prem खिड़की के बाहर गर्मी की रात बिखरी हुई है, गर्मी की गुनगुनी सी रात । खिड़की से सटकर लगी हुई रात रानी की झाड़ी के फूलों की मादक गंध खिड़की के परदे से अठखेलियों कर रही हवा के साथ कमरे में आ रही है । खिड़की के छोर पर लदी हुई रंगून क्रीपर की लतर भी लाल सफेद और गुलाबी फूलों के गुच्छों के कारण झुकी झुकी जा रही है । खिड़की के पार दूर आसमान में आधा अधूरा चाँद टंका हुआ है । ग्रीष्म की धूप को दिन भर सहन करने के बाद झुलसे पेड़ों  की पत्तियों और शाखाओं को रात की ठंडी हवा सहला रही है । हवा का स्पर्श पाकर पत्तियां कृतज्ञतावश झुकी झुकी जा रही हैं । गर्मी के मौसम की सबसे बड़ी विशेषता उसकी रात होती है । जितना तपता हुआ, जलता हुआ दिन उतनी ही सुहानी रात ।
खिड़की से हट कर सोनू अंदर आ गया और अपनी कविता की डायरी ले कर कुर्सी पर बैठ गया। लड़का अभी भी उसी प्रकार सो रहा है । सोनू गौर से उस लड़के के चेहरे को देखने लगा । चौदह-पन्द्रह वर्ष की मासूमियत से भरा हुआ चेहरा, जिस पर जवानी ने होठों के ऊपर कल्ले की तरह फूट रहे मूंछों के बारीक-बारीक रोम के रूप में अभी दस्तक देना प्रारंभ ही किया है । गुलाबी होंठ जिनको बीमारी ने भले ही सुखा दिया है मगर अभी भी उनमें ताजगी है। बीमारी के बाद भी चेहरे पर किशोरावस्था की चमक और स्निग्धता बिखरी है ।
सोनू को यहाँ लडक़े की देखभाल के लिये रखा गया है । वैसे वो एक निजी अस्पताल का कर्मचारी है जिसके मालिक लडक़े के पिता के करीबी दोस्त हैं उनके ही कारण सोनू को यहां भेजा गया है । लड़के को दवा देना उसे पंलग से उठाकर टहलाना, खाना खिलाना सबकी व्यवस्था सोनू को करनी होती है। लड़के की माँ नहीं हैं केवल पिता ही हैं, जिनको कारोबार के सिलसिले में घर से बाहर रहना पडता है।  इससे ज्यादा न सोनू को पता है, ना ही उसको पूछने की इजाज़त है । उसे बस ये पता है कि यहां से उसे अच्छा पैसा मिलेगा जो कालेज की परीक्षा फीस भरने में काम आ जाएगा । यहाँ पर जब तक है तब तक कविता लिखने का भी समय है उस के पास । अस्पताल की नौकरी वो केवल अपनी कॉलेज की पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिये ही कर रहा है, मगर अस्पताल में काम करते समय कविता? सोचा ही नहीं जा सकता । 
''सोनू भय्या'' लडक़े की आवाज सुनकर सोनू की तंद्रा टूटी ।
''हाँ बोलो'' सोनू ने कुर्सी से उठ कर पंलग की तरफ जाते हुए कहा ।
''पानी चाहिए सोनू भय्या'' लड़के ने उत्तर दिया ।
''देता हूँ तुम लेटे रहो'' फिर घड़ी देखते हुए कहा ''दवा लेने का टाइम भी तो हो गया है'' कहते हुए सोनू दवा निकालने लगा ।
''चलो उठ कर बैठ जाओ दवा लेना है'' सोनू के कहते ही लड़का धीरे धीरे उठा और तकिये से टिक कर बैठ गया । दवा देने के बाद जब सोनू वापस कुर्सी पर बैठने जाने लगा तो लडक़े ने कहा ''सोनू भय्या यहीं बैठ जाओ न पलंग पर, आपसे बातें करूंगा, अब नींद तो आएगी नहीं ।'' लडक़े के अनुरोध पर सोनू वहीं बैठ गया। पलंग के  पास रखी टेबल पर से कंघी उठा कर लडक़े के बाल ठीक करने लगा । गर्मी की मस्त हवा के कारण लडक़े के बाल बिखर बिखर जा रहे हैं । शाम को नहाते समय लडक़े ने जिद करके शैंपू लगाया था और देर तक नहाता रहा था ।
''सोनू भय्या'' लड़के के सर पर गिर रही एक लट को जब वो पीछे कर रहा था तब लडक़े ने कहा । ''हूँ ...।'' कंघी को टेबल पर रखते हुए कहा सोनू ने । कुछ देर तक लड़का चुप रहा फिर बोला ''ये प्रेम क्या होता है ....?'' लड़के के प्रश्न से सोनू कुछ चौंका फिर मुस्कुराता हुआ बोला ''प्रेम....? अभी तीन चार साल रुक जाओ, सब पता चला जाएगा'' कहते हुए उसने लडक़े के बालों को हल्के से बिखरा दिया ।
''तीन चार साल रुक पाऊँगा मैं...?'' लड़के ने उदासी से पूछा । लड़के के पूछते ही कमरे की हवा रुक गई।
''क्या होता है प्रेम सोनू भय्या ...?'' सोनू को चुप देख लड़के ने फिर पूछा ।
''प्रेम वो होता है जो हमें किसी दूसरे से जोडता है ।'' सोनू ने कुछ टालने वाले अंदाज में कहा ।
''किससे ?'' लडक़े ने फिर पूछा ।
''किसी से भी, उन सबसे जो हमें अच्छे लगते हैं, हमारे माँ-बाप, हमारे भाई-बहन, हमारे दोस्त'' सोनू ने जवाब दिया ।
''माँ तो मेरे पास नही हैं पापा हैं पर वो भी ....... भाई बहन भी नही हैं''  कहते-कहते  लडक़ा फिर चुप हो गया । लडक़े की आंखें अचानक नम हो गईं थीं । सोनू को लगा उसकी पलकों के किनारे झिलमिला भी रहे हैं । उसने लडक़े को सहज करने के लिए कहा ''और सबसे खास प्रेम हमें किसी एक खास से भी होता है''  सोनू के इतना कहते ही लडक़े के चेहरे के भाव अचानक बदल गए, मानो सोनू ने उसके मन की बात कह दी हो ।
''कौन खास सोनू भय्या ..?''  उसने उत्सुकता से पूछा ।
''ये जो बाहर चाँद नजर आ रहा है न, आधा अधूरा सा चाँद, इसको देखकर न तो रात की रानी के  फूल झूम रहे हैं न पेड़ों की पत्तियां इठला रही हैं । क्योंकि ये सब एक खास चाँद से प्रेम करते हैं । पूर्णमासी के पूरे चाँद से । अभी दो दिन बाद जब ये चाँद पूरा हो जाएगा तब ये सब उस खास के  प्रेम में पागल हो जाएँगे '' सोनू ने उत्तर दिया ।
''सचमुच ........?''  लड़के ने उत्सुकता से फिर पूछा ।
''हाँ बिल्कुल''  सोनू ने कहा ।
''दिखाओगे  मुझे''  लड़के ने पूछा । 
''हाँ बिल्कुल दिखाऊँगा''  सोनू ने उत्तर दिया ।
लड़का गौर से खिड़की के पार के चाँद को देखने लगा । उसके चेहरे के भाव पल-पल बदल रहे थे । कुछ देर तक देखते रहने के बाद लड़का फिर उदास हो गया ।
''तुम्हें मिला कोई खास ..?''  सोनू ने लडक़े का मूड बदलने के लिए पूछा ।
लडक़े ने सोनू की तरफ देखा । सोनू ने देखा उन दो नन्ही आंखों में सितारे झिलमिला रहे थे । फिर अचानक वो शरमा गया और चादर के धागे खींचने लगा ।
''हूँ ..... मतलब मिली है''  सोनू ने मजाक के अंदाज में पूछा ।
''है नहीं थी........।''  लड़के ने उसी तरह झुके हुए कहा पर उसकी आवाज डूबी हुई थी ।
''कब ?''  सोनू ने पूछा ।
''जब में स्कूल जाता था .........''  लडके के स्वर में उदासी थी । उसकी आवाज ऐसी थी मानो किसी सुनसान रात में पहाड़ पर लगे पेड़ों पर बर्फ गिर रही हो ।
''कौन थी ....?''  सोनू ने फिर पूछा ।
''मेरे साथ ही पढती थी और मेरे साथ वही होता था जो अभी आपने कहा ना कि पूर्णमासी के चाँद को देखकर पेड़ों को हो जाता है ।''  लडक़े ने धीरे से कहा ।
''हूँ....... खूब बात-वात होती होंगी तब तो उससे''  सोनू ने शरारत के लहजे में पूछा ।
''नहीं, बात तो एक बार भी नहीं हुई''  लडक़े ने सर उठा कर उत्तर दिया ।
''अरे ..........! क्यों..............?''  सोनू ने पूछा । 
''हिम्मत नहीं होती थी और वो भी शायद बात करना नहीं चाहती थी''  लड़के की आंखें बुझ गईं थीं ।
''चलो अब जब स्कूल जाना शुरू करो तो सबसे पहले उससे जाकर बात करना और नहीं कर पाओ तो मुझे ले चलना मैं तुम्हारी तरफ से बात कर लूंगा ।''  सोनू ने लडक़े के सर पर हाथ रखते हुए कहा ।
''क्यों मजाक करते हो सोनू भय्या, अब कहाँ जा पाऊँगा मैं स्कूल ? अब तो शायद मम्मी के  पास ही चला जाऊँगा''  कहते हुए लड़के ने सर पर रखा सोनू का हाथ लेकर गोद में रख लिया और दोनों हाथों में दबा लिया । सोनू ने दूसरे हाथ से लड़के को कंधे से खींचा और अपनी गोद में उसका सर रख कर लिटा लिया ।
''नहीं बेटा ऐसा नहीं कहते, मैं हूँ ना, मैं तुमको बिल्कुल ठीक कर दूंगा''  सोनू ने लड़के की आंखो में आई नमी को अपनी उंगलियों में समेटते हुए कहा । लडक़े ने कोई उत्तर नहीं दिया उसी तरह लेटा रहा । सोनू उसके  बालों को सहलाता रहा । कुछ देर बाद जब उसको लगा कि लड़का सो गया है तो उसने आहिस्ता से लडक़े का सर अपनी गोद से उठा कर तकिये पर रखा उसे चादर उढ़ाई और आकर अपने पंलग पर लेट गया ।
अगले दिन से लड़के की तबीयत बिगड़ने लग गई थी । तेज बुखार में बडबडाता रहता था । सोनू ने सुना कि उसकी बड़बड़ाहट में बार बार मम्मी शब्द आ रहा है । नर्सिंग होम से कई बार डाक्टर आकर लड़के को देख कर जा चुके थे ।
बुखार के तीसरे दिन जब डाक्टर सिन्हा लड़के को देख कर वापस जा रहे थे रहे थे तब सोनू ने पूछा था ''कोई डरने की बात तो नहीं है न सर''  ।
''डरने की बात तो है, अब इसे अस्पताल में शिफ्ट करना ही पड़ेगा, ये रिकवर हो ही नहीं पा रहा है । इसके  पिता कब तक आ जाएंगे ?''  डाक्टर सिन्हा ने कहा था ।
''बस शायद परसों तक आ जाएंगे, सर्वेंट बता रहा था कि उनका फोन आया था''  सोनू ने उत्तर दिया ।
''ठीक है उनके  आते ही  इसे शिफ्ट कर देंगे, तब तक ध्यान रखना कुछ भी हो तो तुरंत खबर करना''  कहते हुए डाक्टर सिन्हा चले गए । सोनू आकर लड़के के सिरहाने बैठ गया । और धीरे धीरे उसका सर दबाने लगा । कुछ देर बाद लडक़ा कसमसाया और उसने आंखें खोल दीं । सोनू को देखा तो मुस्कुरा दिया । ''उठ गए, चलो अच्छा किया, शाम भी हो गई है''  सोनू ने कहा ।
लड़का कुछ देर तक सोनू को देखता रहा फिर बोला ''सोनू भय्या क्या अब मैं उसको कभी नहीं देख पाऊँगा ?''
''क्यों नहीं देख पाओगे? मुझे उसका पता, टेलीफोन नंबर दो अभी बुला लेता हूँ'' सोनू ने उत्तर दिया ।
''वो तो मुझे कुछ भी नहीं पता''  लडक़े ने उदासी के  साथ कहा।
''चलो मैं कल स्कूल जाकर पता कर लूंगा और उसको बुला लाऊँगा''  सोनू ने लडक़े का उत्साह बढाने के लिए कहा। लड़का फिर चुप हो गया । खिड़की के बाहर देखता रहा फिर अचानक बोला ''सोनू भय्या आज पूर्णिमा है ना ? आज आपने कुछ दिखाने का कहा था ।''
''हाँ भाई दिखा दूंगा रात तो होने दो'' सोनू ने उत्तर दिया ।
''सोनू भय्या मैं अपनी मम्मी को भी देखना चाहता था पर नहीं देख पाया, ये सब मेरे साथ ही ....'' कहते कहते लडक़ा चुप हो गया । 
''चलो आज दिखा दूंगा जब चाँद पूरा होगा ना तब उसमें तुमको अपनी मम्मी भी  दिखेंगी और वो भी । वो सब दिखेंगे जिनको तुम प्रेम करते हो'' सोनू ने कहा ।
''सच .......।'' लड़के ने उत्साह में भरकर कहा ।
''बिल्कुल सच'' सोनू ने उत्तर दिया ।
''पर मैं उनको छू तो नहीं पाऊंगा न........?'' लडक़ा फिर उदास हो गया ।
''क्यों नहीं छू पाओगे ? जब चाँद को देखो  तो मेरी इस हथेली को छू लेना तुमको ऐसा लगेगा कि तुम उन सबको छू रहे हो जिनको तुम प्रेम करते हो '' सोनू ने अपनी हथेली दिखाते हुए कहा ।
''ठीक है'' लड़का फिर उत्साह में भर गया। 
''पर देखो जब चाँद में तुम्हारी वो खास नजर आए तो उसे देखकर शरमा मत जाना'' सोनू ने लडक़े की कमर में गुदगुदी करते हुए कहा लड़का खिलखिला उठा ।
रात को लडक़ा सोनू के साथ खिडक़ी पर आ गया । लड़के को सोनू ने गोद में उठा कर खिडकी पर बैठा दिया था क्योंकि अब उसके  चलने फिरने की ताकत बिल्कुल क्षीण हो गई थी ।
''देखो वो पूरा पीला चाँद'' अमलतास के दो पेड़ों के ऊपर दिख रहे चाँद की ओर इशारा करते हुए सोनू ने कहा । लड़के ने सर उठा कर चाँद को देखा ।
''देखो उसमें अपनी मम्मी को । दिख रही हैं ना?''  सोनू ने पूछा, लडक़े ने हाँ में सिर हिलाया ।
''ठीक है अब आंखें बंद करके मेरी इस हथेली को छुओ''  सोनू के कहते ही लडक़े ने वैसा ही किया । थोडी देर बाद लडक़े ने हथेली को खींच कर अपने चेहरे से सटा लिया । कुछ ही देर में सोनू की हथेली भीग गई ।
सोनू ने लडक़े की आंखें पोंछीं और फिर कहा ''चलो अब फिर देखो चाँद को, अब वो दिखेगी''  लड़के ने फिर चाँद को देखा । ''दिखी ?''  सोनू  ने पूछा। लडक़े ने फिर हाँ में सर हिलाया और  आंखें बंद कर ली और सोनू की हथेली  को फिर चेहरे से लगा लिया । अबकी बार सोनू को हथेली पर नमी की जगह आंच का एहसास हुआ लड़के की गर्म सांसों की आंच का एहसास । आंच धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी। बढते-बढ़ते अचानक एकदम ठंडी हो गई और हथेली पर सांसों के  टकराने का एहसास भी बंद हो गया । सोनू ने देखा दूर आसमान पर एक सितारा टूटा और रोशनी की लकीर छोडता हुआ चाँद की तरफ बढ़ा । चाँद के ठीक पास आकर वो सितारा बुझ गया मानो चाँद  को छूकर खामोश हो गया हो । सोनू ने आहिस्ता से लड़के का चेहरा हथेली पर से हटाया लड़का उसकी बाँहों में झूल गया । हवा बिल्कुल ठहर गई थी मगर रात रानी के छोटे-छोटे फूल चुपचाप आंसुओं की तरह टप-टप करके ज़मीन पर टपक रहे थे।kya hota he prem2

समाप्त

1 comments:

Udan Tashtari said...

कहानी उतर गई...एक गहरी छाप छोड़ते हुए.